Monday, December 20, 2010

बिटिया द्वारा लिखी एक कविता

सपनों की उड़ान

दुनिया के विस्तृत जाल में,
फड फड होते हैं हजारों सपनें,
व्याकुल पक्षियों की मानिंद,
कुछ है सुनहरें, कुछ नीलें-पीलें ।
हैं कुछ शोख , कुछ गंभीर,
आधे रंगीलें, आधे भडकीले ।
आतुर हैं गगन की उड़ान को,
सीखा नहीं इन्होनें द्दरा पर उतरना,
अरमान है केवल ऊँचा उडना,
आतुर है भेदनें को अम्बर,
अनोखे, निराले हैं ये सपनें,
कौन जानें इनका ठिकाना ।
किस मजिंल पर है इनको जाना,
कौन जानें इनकी अन्तिम परिणती ।
दिखलातें कभी दृश्य
अनदेखा, अन्जाना ।
कभी दिखलाते
वास्विकता से परें की घटना ।
हैं क्या ये, मात्र छलावा,
क्हाँ से पाते ये संस्कार,
मनुष्य पागल करता इस पर विचार ।
अरें छोडों, रहनें दों
विचारों को बहनें दो ।
सपनें हैं,
अपनें हैं ।
शब्बा खैर!

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