आज Fahmida_Riaz
जी ने अपनी वाल पर मेरी बेटी की कविता "तुम्हारा चेहरा मदर लगाई..मेरे लिए फख्र की बात है...
Fahmida_Riaz |
Vipin Choudhary |
तुम्हारा चेहरा मदर – विपिन चौधरी
एक अदृश्य आकृति के मस्तक पर अपनी कामनाओं, सपनों और अरमानों का सेहरा बाँधा
बदले में उसने हमें एक मूर्ति नवाजी
जिसका चेहरा जीवन, उम्मीद, ममता,स्नेह, करूणा से लबरेज़ था
दूरी को बींधने वाली उसकी दो आँखे, सीने पर बंधे कोमल-स्नेहिल दो हाथ
और नीली किनारी वाली सफेद साड़ी पहिने इस मूर्ति को देख हम अभिभूत हो गये
फिर एक प्रदर्शनी मे जब रघु राय की श्वेत-श्याम तस्वीर में वही अक्स दुबारा देखा तो
काले-सफेद रंग के खूबसूरत तिलिस्म पर हमें पक्का यकीन हो गया
वह चेहरा उस 'मदर टेरेसा' का था
जिसके बारे में सुनते आये थे कि
बेजान चीजें उनके करीब आकर धड़कना सीख जाती हैं
बाद में मदर की यह करामात हमने अपनी खुली आँखों से देखी
एक, दो बार नहीं
हज़ारों- हज़ार बार
अपने घर-परिवार को ताउम्र ना देख पाने
का दुख मदर को
कैसे साल सकता था
जबकि उन्हे हर चेहरे पर सिमटी दुखयारी लकीरों को खारिज कर देने का हुनर बखूबी आता था
वे कोसावो में जन्मी थी
पर उनके पांवों ने समूची धरती पर धमक दी
उनके होने की आवाज़ हरेक कानों ने सुनी
उनकी बाँहें सारी धरती को समेटने के लिये आगे बढीं
और समूचा संसार बिना ना-नुकर उनकी झोली में सिमट गया
यह केवल तुम्हारे ही बस का मामला रहा माँ..... टेरेसा
कि
दुनिया-भर के किनारे पर धकेले हुये प्राणी
तुम्हारे निकट अपनी
शरण-स्थली बनाते रहे
रात-दिन, रिश्ते-नातों, दूरी-नज़दीकियों के इसी दुनियावी वर्णमाला के बीच ही तो था
वह सब
जिसे खोजने हम लोग दर-बदर भटकते रहे
और 'उसी सब' को अपनी ऊष्मा के बूते तुमने अपनी हथेलियों में कैद कर लिया
धरा की सखी-सहेली बन
जीवन के उच्च आदर्शों को सींच-सींच कर तुमने लोगों के मन को तृप्त किया
और धीरे से कहा 'शांति'
तब सारी रुग्ण व्यवस्थायें पल भर में शांत हो गईं
पाणिग्रही समय ने हमें अपने बारे में कुछ नहीं बताया
पर तुम तो सच-सच बताना मदर
मानवीयता के सबसे ऊँचें पायदान पर खड़े होकर
जब कभी तुमने सहसा निचे झाँका तो
क्या हम
अपने-अपने स्वार्थों की धूरी पर घूमते बजरबट्टू से ज्यादा कुछ नज़र आये?
सीने में जमी हुई हमारी दुआएं
भाप की तरह उठती और बिना छाप छोड़े वायु में विलीन हो जाती रही
तुम्हारी दुआओं ने अपने विशाल पँख खोले
और हर टहनी पर कई घोंसले बनाये
मूर्तियों के नज़दीक अपनी नाक रगड़ने वाले हम
किसी इंसान को आसानी से नहीं पूजते
पर इस बार हमने, तुंम्हें जी भर कर पूजा
और इसी कारण हमारे फफूँदी लगे विचार सफ़ेद रूई मे तब्दील होते चले गये
महज अठारह साल की उम्र में तुम
मानवीयता के प्रेम में गिरफ्तार हो गईं
हम दुनियादारों को प्रेम की परिभाषा खोजने में जुगत लगानी पड़ी
उसी धुंधलके में एक बार फिर याद आया
केवल तुम्हारा ही चेहरा मदर.
एक अदृश्य आकृति के मस्तक पर अपनी कामनाओं, सपनों और अरमानों का सेहरा बाँधा
बदले में उसने हमें एक मूर्ति नवाजी
जिसका चेहरा जीवन, उम्मीद, ममता,स्नेह, करूणा से लबरेज़ था
दूरी को बींधने वाली उसकी दो आँखे, सीने पर बंधे कोमल-स्नेहिल दो हाथ
और नीली किनारी वाली सफेद साड़ी पहिने इस मूर्ति को देख हम अभिभूत हो गये
फिर एक प्रदर्शनी मे जब रघु राय की श्वेत-श्याम तस्वीर में वही अक्स दुबारा देखा तो
काले-सफेद रंग के खूबसूरत तिलिस्म पर हमें पक्का यकीन हो गया
वह चेहरा उस 'मदर टेरेसा' का था
जिसके बारे में सुनते आये थे कि
बेजान चीजें उनके करीब आकर धड़कना सीख जाती हैं
बाद में मदर की यह करामात हमने अपनी खुली आँखों से देखी
एक, दो बार नहीं
हज़ारों- हज़ार बार
अपने घर-परिवार को ताउम्र ना देख पाने
का दुख मदर को
कैसे साल सकता था
जबकि उन्हे हर चेहरे पर सिमटी दुखयारी लकीरों को खारिज कर देने का हुनर बखूबी आता था
वे कोसावो में जन्मी थी
पर उनके पांवों ने समूची धरती पर धमक दी
उनके होने की आवाज़ हरेक कानों ने सुनी
उनकी बाँहें सारी धरती को समेटने के लिये आगे बढीं
और समूचा संसार बिना ना-नुकर उनकी झोली में सिमट गया
यह केवल तुम्हारे ही बस का मामला रहा माँ..... टेरेसा
कि
दुनिया-भर के किनारे पर धकेले हुये प्राणी
तुम्हारे निकट अपनी
शरण-स्थली बनाते रहे
रात-दिन, रिश्ते-नातों, दूरी-नज़दीकियों के इसी दुनियावी वर्णमाला के बीच ही तो था
वह सब
जिसे खोजने हम लोग दर-बदर भटकते रहे
और 'उसी सब' को अपनी ऊष्मा के बूते तुमने अपनी हथेलियों में कैद कर लिया
धरा की सखी-सहेली बन
जीवन के उच्च आदर्शों को सींच-सींच कर तुमने लोगों के मन को तृप्त किया
और धीरे से कहा 'शांति'
तब सारी रुग्ण व्यवस्थायें पल भर में शांत हो गईं
पाणिग्रही समय ने हमें अपने बारे में कुछ नहीं बताया
पर तुम तो सच-सच बताना मदर
मानवीयता के सबसे ऊँचें पायदान पर खड़े होकर
जब कभी तुमने सहसा निचे झाँका तो
क्या हम
अपने-अपने स्वार्थों की धूरी पर घूमते बजरबट्टू से ज्यादा कुछ नज़र आये?
सीने में जमी हुई हमारी दुआएं
भाप की तरह उठती और बिना छाप छोड़े वायु में विलीन हो जाती रही
तुम्हारी दुआओं ने अपने विशाल पँख खोले
और हर टहनी पर कई घोंसले बनाये
मूर्तियों के नज़दीक अपनी नाक रगड़ने वाले हम
किसी इंसान को आसानी से नहीं पूजते
पर इस बार हमने, तुंम्हें जी भर कर पूजा
और इसी कारण हमारे फफूँदी लगे विचार सफ़ेद रूई मे तब्दील होते चले गये
महज अठारह साल की उम्र में तुम
मानवीयता के प्रेम में गिरफ्तार हो गईं
हम दुनियादारों को प्रेम की परिभाषा खोजने में जुगत लगानी पड़ी
उसी धुंधलके में एक बार फिर याद आया
केवल तुम्हारा ही चेहरा मदर.
Happy writting!
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