Welcome to my world - a blend of passion, taste, and old-world traditions. गेंहूँ काटती हरियाणवी महिलाएं
Sunday, July 31, 2016
Saturday, April 2, 2016
मेरा आदर्श गांव
आकाशवाणी रोहतक तैं मेरा एक लेख "मेरा आदर्श गांव " प्रसारित होया था मैने फख्र सै अक मैं शुरू तैं ऐ गांव की साफ़-सफाई अर तरक्की की हिमायती थी, अर इस खातर रेडियो तैं बोल्या करदी , मैग्जीनों, अखबारों पर पम्फ्लेट मैं लिख्या करदी। आज सारा देश साफसफाई कै बारे मैं लग रहे सैं। म्हारे देश के प्रधान मंत्री भी साफ़-सफाई के भोत हीमायती सैं उणनै स्वच्छ भारत अभियान चला राख्या सै जो राष्ट्रीय स्तर का अभियान सै
मेरा आदर्श गांव
आज
के दिन मेरा गांव एक आदर्श गांव गिना जावै सै.
मेरा गांव बहुत सुन्दर और साफ सुथरा सै, अर गली-गली मैं साफ़ सफाई सै. ना किते
कूड़ा-कर्कट, ना किते गंदे पानी की नाली, ना किते कागज़-कपड़े के टुकड़े. ईसा
लागै सै, अक सफाई नै म्हारे गांव मैं
आकीं अपना रूप धारण कर लिया हो. गाँव मैं भोत मेल मिलाप सै ना किसे का किसे तैं
बैर अर ना किसे तैं जलन अर ना जाति-पाति का भेद-भाव, ना छुत-छात की कोई खाई. बस सारे
माणस-लुगाई मिल कीं गांव की उन्नति करण मैं जुटे रहवैं सैं.
इब
तो म्हारे गाम के घन-खरे (ज्यादातर) लोग पढ़े-लिखे होग्ये, अर लुगाई-छोरी भी किमें पढ़-लिख गई. जो रह रही सैं वे
जुट रही सैं पढण खातिर. गाँव के घण-खरे(ज्यादातर) लोग अख़बार पढ़ लें सैं, ट्रांजिस्टर पर समाचार सुणा करैं सैं. लोग
जिद खेतां मैं काम करण जावें सैं तो
उस बख्त भी उनकै धोरै डोलै(फैंसिंग) पर ट्रांजिस्टर बाजदा रहवै
सै. मेरै गांव मैं विकसित युग की घण-खरी चीज़ सैं. गाँव मैं
डाकखाना अर स्कूल तो सैं ए, अस्पताल अर बैंक भी सैं, एक डांगरां का अस्पताल भी
सै. गांव मैं सब कै घरां मैँ बिजली सै अर मीठे पाणी के नलके तो हर गली मैं लग रहे सैं.
म्हारे गांव मैं आजकल लुगाई धुआँ -रहित-चूल्हे पर रोटी बणाया
करैं वे उस धुआँ -रहित-चूल्हे पर
धर कीं ए प्रेशर-कूकर पर सब्ज़ी-दाल बणाया करैं, अर
आजकल तो कई जगाई धुप का चूल्हा भी बरतण लागगी.
सरकारी
कागज़ाँ मैं मेरे गांव का ज़िक्र नए युग के एक
आदर्श गांव कै रूप मैं होवै सै. जिद भी कोई विदेशी मेहमान आवै सै तो सरकार
उसनैं म्हारा गांव ज़रूर दिखाया करै. इबतांई जितनै भी विदेशी मेहमान
मेरे गांव नैं देखण खातिर आये सैं वे
म्हारे गांव की साफ-सफाई, मेल-मिलाप अर लुगाई-छोरियां कै हाथ की बणी चीज़ देखकीं
बहुत खुश होए सैं.
इबै
कुछ दिन पहले म्हारे गांव का एक छोरा विदेश तैं पढ़ कीं उलटा आया तो वो अपनै सतीं एक विदेशी मिंया-बीबी
के जोड़े नैं भी ल्याया था, वो दो दिन
म्हारे गांव मैं रहे गांव आल्यां नैं उनका खूब आदर-मान करया. जिद वे
महिला-मंडल केंद्र मैं गए अर उननैं लुगाई-छोरियां कै हाथ की बणी दरी, झोले अर हरियाणवी
चुटले-घाघरे (हरियाणा का परम्परागत केश विन्यास, और
लहंगा) आली गुड़िया देखी तो वे अचंभित होगे उनके हाथां का हूनर देख कीं. महिला-मंडल की प्रधान नैं
उन ताईं एक दरी अर एक गुड्डा-गुड्डी का जोड़ा भेंट करया.
गांव
मैं घूमते-घूमते जब वे चमारां कै पाने मैं गए तो उननै चमारां कै हाथां की बणाई होई
जूती भोत बढीया लागी तो म्हारे गांव के एक चमार जो पंचायत का
मैम्बर भी सै, उन बिदेसीयां ताईं एक जोड़ी जूतियां की भेँट करी म्हारे गांव के सरपंच नै उन
ताईं माटी के बणे खिलौणे भेंट करे तो उननै खिलौणे देख कीं पूछ्या अक ये खिलौणे कित के बणे सैं तो म्हारे गांव के सरपंच साब
बोले ये म्हारे गांव के कुम्हार बणाया करैं सैं, वे बोले हम संसार के कई देशां मैं हांड लिए
मण हमनैं इसी कला किते नहीं देखी.
म्हारा
गांव आदर्श गांव किस तरां बण्या इसकी भी एक कहाणी
सै म्हारे गांव की तरक्की अर उन्नति कई लोगां कै
दिमाग की उपज सै जिननैं इसका खाका बणा कीं इस ताईं यो रूप दे दिया. आज मैं
तहांम नैं इसे दो- तीन लोगां कै
बारे मैं बताऊँगी जिणनैं इस गांव के आदर्श बणन की नीम धरी थी.
म्हारे गांव का
सरपंच घणीए ज़मीन का मालिक सै अर वो बहोत अच्छा आदमी सै सन १९५२ तैं वो बिना किसे
चुनाव के सरपंच बणदा आवै सै. मनै तो जिद तैं होश संभाले सैं यो ऐ सुणदी आई
अक ईबकाल दादे कै ४०० मण अनाज़ होया
कदे ५०० मण अनाज़ होया कितणा ए काल पड़ो उसकै
१०-१५ मण अनाज़ तो जरूर
होगा. तो फेर कै घरीं
पिसे-धेलयां की तो कमी थी नहीं उसने अपणा बड़ा बेटा
सुन्दर अपणी बेटी जो बड़े शहर मैं रह्या करदी उसकै धोरै पढण खातिर भेज
राख्या था. वो बस छुट्टियां मैं ए गांव आया करदा. बचपन तैं ए सुन्दर नैं आपणे
गांव तैं बहोत लगाव था. जिदभी वो गांव आंदा खेतां मैं
गांव कै बाळकां सतीं खेल्या करदा. घर मैं डांगर-ढोर के काम करदा, कदे भी खाली नहीं बैठ्या करदा, किमे-न-किमे
करीं जाया करदा.
जब
वो थोड़ा बड़ा होग्या तो उसनै दसवीं पास करली थी अर वो गांव मैं आंदा तो वो
अपणे गांव के आदमियां नैं गली-गली मैं ताश खेल्दै देखदा तो बहोत
दुःखी होंदा, वो घरीं आकीं सरपंच साब
नैं कहंदा,"पिताजी गांव के
आदमी क्यूकर डोलियाँ(दीवारों) कै सहारै बैठ कीं आपणा कीमती टाइम खराब
करया करें सैं,अर बैठेंगे भी सही गाल कै कीचड़ अर गंदगी कै श्यामीं,
ओड़ै
ए पाणी अर कूड़ा पड़ीं सड़ीं
जागा अर ओड़ै ए बैठे वे मारीं जांगे
गप्पे अर खेलीं जांगे ताश. उसके पिताजी बोले, "बेटा गांमाँ मैं लोग न्यू ए टाइम पास
करया करें सैं जिब खेत मैं किमे करण न ना हो तो इनैं -उनैं बैठ कीं टैम पास
कर लिया करें सैं, बेटा तनैं के करणा सै
गामां का मैं मेरे बेटे नैं विदेश भेजूंगा डाक्टरी पढ़ण खातिर, फेर तूँ ओडै ए बस जाईये या फेर
आपणे किसे बड़े शहर मैं अपणी कोठी बनाइये आधे पिसे मैं द्यूंगा मेरे बेटे नैं.
सुन्दर
कहंदा,"पिताजी नहीं मैं अपने देश
कै सतीं गद्दारी नहीं
करूँगा. मैं तो आपणे देश मैं ए बसूँगा अर अपणे
गांव नैं भी क्यूँ छोडूँ गांव कोए छूत की बीमारी तो सैं नहीं अक पढ्या -लिख्या अर छोड़ दिया किसे छूत की
बीमारी की ढाल गांव. तो इसे-इसे
सवाल-जवाब करया करदा सुन्दर अपणे पिताजी कै सतीं.
एक
बर जिब वो डाक्टरी पढ्या करदा तो छुट्टियां मैं गांव आ रह्या था वो अपणे
पास के शहर हिसार की यूनिवर्सिटी मैं किसान मेला देखण चला गया. ओडै
किस्म-किस्म की चीजां की प्रदर्शनी लाग रही थी किते बढ़िया बीज थे, किते खाद आर किते कीड़े मारण की दवाई किते
अच्छी फ़सल लेण के तरीके बताण लॉग रहे थे. आर मेले के एक कोणे मैं गृह-विज्ञान की प्रदर्शनी लॉग रही
थी उसका ध्यान ओडै गया उसने तरां-तरां की घरलू चीजां की जानकारी ली धुँआ -रहित -चूल्हा, सोलर कूकर, पानी साफ़ करण के घड़े अर फल सब्जी काटण के औज़ार देखे अर भोत
प्रभावित होयाअर उसनै सोच्या अक म्हारे गांव मैं यदि ये सब
चीज बरतण लाग जां तो कितणा आच्छा हो.
घरीं
जाकीं उसनै अपणे पिताजी सरपंच साहब ताईं बताई अक पिताजी आप क्यूकर भी करो कोशिश कर
कीं आपणे गांव मैं ईसा कुछ करो अक लोग
अपणे-अपणे घरां मैं
ये सब चीज़ बरतण लॉग जां सुंदर
नैं तो बस मुंह मैं
तैं बात काढ़णी थी सरपंच साब बोले, "बेटा ठीक सै मैं काल ए यूनिवर्सिटी मैं जाऊंगा अर पूछ कीं
आऊँगा या तो वे उरै आकीं धुँआ-रहित-चूल्हा, साफ शैचालय, साफ़ पाणी के घड़े इत्यादि बणाने सीखा जांगे या फेर आपिं
गांव के आदमी, छोरियां नैं ग्रुप बणा कीं
ओडै सिखण खातिर भेज दयांगे."
सरपंच
साब नैं इतणी कोशिश करी अक जब सुन्दर अगली बारी गांव आया तो
उसनैं दूर तैं ए चिम नियां मैं तैं धु-धू कर कीं धूँआ लिकड़दा देख्या
अर गांव की तो जणू काया पलट होगी थी. इब तो हर बार सुन्दर
कोई न कोई नई बात बता जाँदा अर सरपंच साब उसनैं पूरी करण जुट
जांदे. सुन्दर की देखा-देखी गांव कै कई और युवकां नैं भी गांव ताईं आदर्श गांव बणाण मैं योगदान
दिया था.
उनमैं तैं एक ब्राह्मणा का छोरा सुमेर
था. वो बचपन तैं ए काफ़ी होशियार था उसके
पिताजी कै खेती की जमीन थी अर वो जमींदारां कै घरीं ब्याह-शादी अर मुंडन संस्कारां मैं पूजा-पाठ अर पंडताई करया करदे उसकी
माँ व्रतां मैं लुगाई छोरियां नैं कहानी सुनाया करदी वे बदले मैं उसने अनाज, पैसे अर लत्ते-कपड़े दिया करदे. सुमेर कै
या बात भोत खटक्या करदी जब कोई गांव की लुगाई उनकै घरीं
वार-त्यौहार नैं सिद्धा देंण खातिर आंदी तो वो कहंदा म्हारै घरीं क्यूँ देण आया करो
हमीं तो धाए - धुस्से सां, थामीं गांव की उस गरीब चमारी नैं
देंदे उसकै तो कोए बाळक भी कोनी. वो
अपणे पिताजी नैं कहंदा, "पिताजी आपणी खेती की जमीन
थाम नैं हिस्से पर दे राखी सै आपिं खुद उस पर खेती करां तो अपणे गुज़ारे
जितना आनाज ऊगा सकां सां." वो बामणां का
छोरा सुमेर पढ़-लिख कीं एक बड़ा व्यापारी बण रह्या सै आर टैम -टैम पर जरूरत पड़दे ए
वो गांव आळां की खूब सहायता करया करै,वो गांव की
पंचायत नैं भी विकास के कामां खातिर एक बड़ी धन-राशी हर बरस
दिया करै. जब भी कदे अकाल पड्या सुमेर नैं गांव
के पशुआं खातिर ट्रक भर-भर कीं चारे के भेजे.
अर सुंदर तो
अपनै गांव कै सरकारी अस्पताल मैं डाक्टर सै अर सरपंच
साब का निजी सलाहकार भी वो ये सै. शुरू-शुरू मैं तो उसने डाक्टरी पढ
की गांव मैं डाक्टरी शुरू कर दी फेर सरपंच साब की कोशिशा तैं
जिद गांव मैं सरकारी अस्पताल की मंजूरी अर अनुदान मिला तो सब
गांव आळां नैं मिल कीं श्रमदान कर फ़टाफ़ट अस्पताल
की बिल्डिंग बणा दी. आज सुंदर उसे सरकारी अस्पताल मैं डाक्टर सै.
साचीं पूछो तो आसपास के गामां मैं वो ए सबका डाक्टर सै.
म्हारे गांव की
पंचायत भी अपणे आप मैं विशेष स्थान राखै सै पंचायत घर की बिल्डिंग भी सब गांव आळां नैं श्रमदान कर कीं बनाई
थी. सब गांव आळे
उसनें अपनी सम्पति समझैं सैं. हम सब
पंचायत नैं आपणा परिवार मानां सां अर अपणै आप नै पंचायत का सदस्य मानां सां. हम सब अपनाएं स्वार्थ नैं
ताक पर रख कीं अपणी इच्छावां का दमन कर देवां सां आर अपणी पंचायत पर आन नहीं आण
देंदे.
यो
ए काऱण सै अक म्हारी पंचायत दिन- दुगणी आर रात- चौगुणी तरक्की करदी जावै सै. या एक आदर्श पंचायत सै इसी पंचायत यदि
सारे देश मैं होज्यां तो गांधी जी का राम-राज्य आदिं देर नहीं लागैगी. म्हारे गांव मैं जवाहर रोज़गार योजना ही
शुरू होगी सै. साढेतीन हज़ार की
आबादी आलै गांव मैं इस योजना के अंतर्गत हमनैं ८०,००० रूपये मिले सैं. म्हारे सरपंच साब नैं पूरा लेख-जोखा
तैयार कर लिया. सब गांव
आळां नैं बेरा सै अक किस -किस कार्यक्रम मैं कितने-कितने
रूपये खर्च होए सैं. हम नैं कितनी दिहाड़ी
मिलैगी अर किसनैं के काम करणा सै. इब हर घर का गरीब आदमी
अपनैं घर कै धोरै ए काम पर जावै सै आर ३०% लुगाई भी इस रोजगार की हकदार होरी
सैं हम सब नैं अपणे गांव पर गर्व सै सरकार भी
हमारे गांव नैं बड़ा मान देवै सै.
Friday, February 5, 2016
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